Wednesday, September 18, 2013

ये वक्त भी बदलेगा कभी ?



1)कभी जब साँसे जिल्लत हो उठती हैं
और कितनी ही परेशानियां जहन में हलके से खटखटाकर लौट जाती हैं
ये देखकर, कि कोई ज्वार अभी अभी उतरा है,
भीतर एक सन्नाटा छाया हुआ है
सब तियां पांचा हुआ जाता है
पूछिए की पैरेलाइज होना किसे कहते है

2)Insomnia with you 
Insomnia without you
The difference between the two is everything.
Neither me , Nor You.

(Inspired by Rumi Sayings)

3)" बारिश के दिनों में भी अनयूस्ड छाता, 
घंटे भर पुरानी च्यूइंग्म,
उलझे हुए हेड्फोन 
और बिना प्रेस किये कपड़ो को लटकाने वाला हेंगर"
कमरा नहीं स्लैम बुक लगता है
अपने ही बारे में बड़ी डीटेल में भरा हुआ !


4)
गले मे एक तरफ़ होने वाला दरारों सा दर्द 
और खाली हास्टल के दूसरे विंग मे बस एक और बीमार दोस्त !
फोन की कन्टेक्ट लिस्ट को देखते हुए शर्मसार हुआ जाता हूं ,
 कि अब किसे कहूं कि बीमार हूं मैं !


5)
डिप से चाय में रंग घुल रहा है
हर बार डुबाने पे रंग कुछ और गहरा हुआ जाता है
मुसलसल हुई जो तुमसे 
मुलाकात याद आ रही है !


6)
छ्त की पटालों पे बिछे कपड़े मैले नहीं होते
धूल को आलस है या थकान, 
बरसो यूं ही उड़ते फ़िरते रहने से
ना सफ़र में कोई परिन्दा निकलता है ,फिर भी क्या
ओखल का पानी बदलता होगा कोई ?
पिताजी एक नई घड़ी कब देंगे
ये वक्त भी बदलेगा कभी ?


7)
चाय का कप थमा के चली जाती मां
या सर में गर्म तेल की मालिश करती तो एक बार लगा था कि
मां के लिये ये सब इतना स्वाभविक क्यों है
जैसे ये करना ही उसका होना है
जैसे बहना नदी का
या खुशबू फूल का
ये देना या करना नहीं है
होना है शायद, जरूर !
अनमना सा हूं रात के खाने की प्लेट में
भूख है अब या नहीं..
मां चुपचाप दो रोटी लेकर आ जाती है
दूसरी रोटी के आखिरी गास में अचानक समझ आता है
मां को पता है
भूख को कितनी भूख है!

2 comments:

  1. (फोन की कन्टेक्ट लिस्ट को देखते हुए शर्मसार हुआ जाता हूं , कि अब किसे कहूं कि बीमार हूं मैं ! )
    *
    ऐसी ही एक लिस्ट खंगाल रहे हैं हम भी, कोई नज़र नहीं आता जिससे कह सकें कि कुछ कहने का मन है...!

    भावभीनी पोस्ट!

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  2. 5) चिट्ठीए नि... दर्द फ़िराक वालिये |
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