
पुराने पैम्पलेट में छपे हुए छात्र संघ के नेता
मिलते हैं उड़ाते हुए अब किसी और की पतंगे
वो कैसा घर था की जिसमे पांचवीं मंजिल भी थी
और फिर एक आँगन भी मौजूद था
किसी रोज एक गुसलखाने की छत ही उठाकर बदल दिया था ठिकाना नलके का
लकड़ी की सीढ़ियों से फर्श की उलटी छत
एक धूल का फांक उठाती थी
मेरे कमरे की छत में नक्शा उकेरा हुआ है एक
सुन्दरबन के डेल्टा सा लगता है कुछ
नील के हाशिये के बीच में बहती लकीरों को
देख के कलाई की नसें भर आया करती हैं
लकड़ी की सीढ़ियों से फर्श की उलटी छत
एक धूल का फांक उठाती थी
मेरे कमरे की छत में नक्शा उकेरा हुआ है एक
सुन्दरबन के डेल्टा सा लगता है कुछ
नील के हाशिये के बीच में बहती लकीरों को
देख के कलाई की नसें भर आया करती हैं
वो जो सबसे ऊपर की मंजिल का कमरा है
हवाओं की सोहबत में बिगड़ा हुआ है
एक छोटी सी रसोई रहती है बगल में
जिसमे कोई अलमारी नही
पर कमी नहीं होती बिल्लियों को चूहे की
और एक झरोखा खुला हुआ है बगल में
जिसमे खुलती है पटालों की छतें
घर खुलता था छत पे
नीम्बू अचार और बड़ी पापड
हाथ बदलते रह्ते है
मीलों की छत पे
हवाओं की सोहबत में बिगड़ा हुआ है
एक छोटी सी रसोई रहती है बगल में
जिसमे कोई अलमारी नही
पर कमी नहीं होती बिल्लियों को चूहे की
और एक झरोखा खुला हुआ है बगल में
जिसमे खुलती है पटालों की छतें
घर खुलता था छत पे
नीम्बू अचार और बड़ी पापड
हाथ बदलते रह्ते है
मीलों की छत पे
घर किसे छोड़ता है
हम ही बेवफा हुए
जो भी चला जाए अभी भी
कोठरी जाड़ों में गर्म रहती है
उस कोठरी की नींद में सपने आते हैं
शतरंज , गणित और कैरमबोर्ड के
कौन खेलता है ये नहीं दिखाई देता
हम ही बेवफा हुए
जो भी चला जाए अभी भी
कोठरी जाड़ों में गर्म रहती है
उस कोठरी की नींद में सपने आते हैं
शतरंज , गणित और कैरमबोर्ड के
कौन खेलता है ये नहीं दिखाई देता
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