Saturday, September 15, 2018

इक दखल है

इक दखल है
सिलवटों से बांधी इस अलसाई रात में
पलटना चादर पे।
ख़्वाब का लिखा, 
नींद तोड़ के बह जाता है ।
मैं पलटता तुम्हे ,
किसी सस्ते उपन्यास के खुरदुरे पन्ने सा
पर मेरा टच
किंडल की स्क्रीन सा अनरिस्पांसिव है ।
भीड़ को स्क्रॉल करो तो
इश्तिहार की तरह आतें हैं लोग
इसलिए
मैंने लिखा तुम्हे एक लव लेटर और
फाड़कर फैला दिए
तुम्हारी वेब हिस्टरी में
कैप्चा के ये टुकड़े।


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