Thursday, February 9, 2012

डू मी अ फ़ेवर ऐट्लीस्ट ।

तुम पढ़ रहे हो क्या? तुम्हारे लिये ही लिखा था !

वैसे तो कितनी कहानी सुनी . अपनी है कोई नयी तो बता..!

नया... ! अबे कुछ नया बता,
उम्र इक वैरियबल है.. वैसे कौन्स्टैन्ट भी है.. मतलब  इक ऐसा वैरियेबल जो आपके द्वारा ऐक्सेसीबल नहीं है।
"चटान कर रहा हूं " ( पिछले ‍६ महीनो मे हिन्दी के मेरे ज्ञान में इकमात्र शब्द जो ऐड हुआ है- ’ चटान ’) । पर नया क्या है सुनाने को । २२ वर्ष की उम्र तक आप अगर निकनेम्ड ’इन्साक्लोपीडीया’ हैं तो आप ऐसा सब कुछ कर चुके होते हैं जो आपको कभी रुचिकर प्रतीत  होता था । इक ऐसा मोड़ ,जहां किया जाना कुछ भी शेष नहीं रहता, चूंकी  प्राप्त किये जाने  लायक चीजों को चखकर देखो तो पता लगता है कि... खाना मिल जाने का तात्पर्य यह नहीं होता कि आपको भूख भी लगेगी... । नाट इन्ट्रेस्टेड के इतने उदाहरण है की कभी कभी लगता है ... तपस्या करने वाले उन सभी को हमसे ईर्ष्या करनी चाहिये । पर हम तो नाट इन्ट्रेस्टेड से भी ज्यादा बोर हैं.... देखो तो ;चेतना आते ही एक बच्चे को निम्न चीजों की चाह होने लगती है :
१) चटर पटर खाने को
२) इक खिलौना जो स्वयं चलता हो
३) खुद के बड़ा होने की चाह


१२ वर्ष की उम्र तक आते आते इच्छायें हो जाती है :
१) १ साइकिल
२) टी.वी का रिमोट
३) मैच का पहला ओवर, पहली बैटिंग
४) १ दस का नोट , रोज !


१७ की उम्र तक आते आते आप साइकिल से बोर हो जाते है ।
१० का नोट १०० में बदल जाता है पर अब आप १०० से कम खर्च करना अपनी बेज्जती समझते है । पहले बिल चुकाने को आतुर ,जब की आपका दोस्त आपसे अधिक खर्च करने की हैसियत रखता हो । गिफ़्ट के पैक  को देखकर अब चेहरे पे मुस्कान आती है क्योंकी आप जानते है.. कोई भी अब एक कार्ड्बोर्ड पे लेमिनेटेड प्राकृतिक दृश्य देने की शर्मिन्दगी को झेलने का झोखिम तो नहीं उठाएगा... तो ऐट्लीस्ट इट विल बी समथिंग ।

१)  इज्जत ( आइ .ई.. ...रेस्पेक्ट )
२) बाइक ( शायद.. ! क्योंकी यू नो..  !ईट वौज नेवर माय टेस्ट ,)
३) और बहुत सारे आप्शन:
   जैसे की ग़ालिब की शायरी को पढ़कर कहना : ठीक ही लिखा है .. ! ( आइ कुड राइट इट बैटर, यू नो !)
   या गिटार में चार  गानों को बजाना सीख लेना, ताकि ... ( यू क्नो इट...इट्स अ मैटर आफ़ रेस्पेक्ट यार )
या फिर ... किसी के अफ़ेयर की चर्चा सुनकर मुस्कुराते हुए कहना " मैं इन सब चक्करो में तभी तो पड़ता ही नहीं.. वरना तो...।"( आइ होप की उसका बर्थडे कब होता है...ये तो पता चल जाए। )"
बैक ग्राउंड मे बजते हुए गाने के साथ : टिंग टिंग  टिंगटिंग टिंगटिंग टिंगटिंगटिंड़िग...  टिंग टिंग  टिंगटिंग टिंगटिंग टिंगटिंगटिंड़िग...  ।  आदर्श वादिता का अर्थ होता है : " शादी तक सोचना । "....

२१ की उम्र तक आते आते :
आपकी समझ मे एक बड़ा फ़ेरबदल होता है। सूची में फ़ेरबदल होता है ।
१) ३५००० विल बी इनफ़ टू स्टार्ट , आइ थिंक ।
२) "आई सपोज दिस इस द फ़ाइनल टाएम..अब मै समझ चुका हू कि प्यार क्या होता है :"
या  " भाई यार , कभी किसी से प्यार मत करना..सब एक जैसी होती है ।"
या " .................................................... सुबुक सुबुक सुबुक ..... " ( अ गर्ल कैन ओनली अन्डरस्टैंड..स्टिल आइ सपोज..वह यह कहना चाहती है : .. मुझ जैसी ..... ( टोटली पर्फ़ैक्ट..आन्स्ट.सिंपल... गार्जीयस टू ).. लड़की के साथ ये कैसे हो सकता है । "
या " बेटे मैं बता रहा हूं ये सब नौटंकी है.. इन चक्करों में पड़ना ही नहीं चाहिये "..द फ़्रस्टेटेड गाय ( अंगूर तब से खट्टे हैं)...।
या तुझे क्या बताऊं की प्यार क्या होता है..तू क्या समझेगा/समझेगी ? ( कभी कभी लगता है फ़्रसट्रेटेड ..सौरी.......’ चूज्ड टू ऐसकेप फ़ार हर हैपीनेस’  प्रेमियों की उप्लब्धियां सभी तथाकथित शहीदों.. विवेकानन्दों , कबीरों..ईटीसी से बड़ी है )

२२ की उम्र तक आते आते आप समझ सकते है( मे बी आर मे बी नाट) :
"आइ एम प्राउड आफ़ यू "  इज नाट इनफ़ !..... थैंक यू इज नाट इनफ़..आइ लव यू इस नाट इनफ़...नथिग इस  इनफ़..नो वन इज इनफ़ "
और खुशकिश्मती से अगर आप किसी दिन दहाड़ मार मार कर खुद को रोते हुए कमरे में पाते हैं तो आप जान जाते हैं कि... वह जो आप खुद को समझते है..वह सब आप नहीं है......।
बैकग्राउंड में गाना बजता है : " ओ नादान परिंदे...... और आप शायद समझ पाते है ..... खुद को बेचना ..महंगा सौदा है... खु्शी मिलावटी है.. खामोशी और अकेलापन मजबूरी नहीं आवश्यकता है...।
हर दिन नई शुरुआत से होता है... फिर वही सेल्फ़ मोटीवेशन..... फिर वही नीड फ़ार सेल्फ़ इम्पार्टेंस... नीड टू फ़ील स्पेशल...।
जब आप इस सब से बोर हो जाते है.. वह सब अत्यधिक मात्रा में मिलने लगता है...फिर वही चंगुल।
परिंदा नादान है सो चंगुल में फ़ंसना आसान है... और फिर वही चक्र.... सब कुछ वही होता है... दुबारा ..... इस विश्वास की  मैं कद्र करता हूं जो कुत्ते को हड्डी पर होता है.. पर मांस खत्म हो गया है..और हड्डी सूखी है..
हम चबाते रहते है... उम्मीद..... फिर वही..सब कुछ वही.... । क्या नया ....सब कु्छ वही...
आई एम आल्सो रीपीटिंग यार .....।
गुड मार्निंग..... डू मी अ फ़ेवर ऐट्लीस्ट ....।
स्पीक द ट्रूथ टू यूरसेल्फ़ ।
अगली बार मिलो तो याद रहे:
" हेत प्रीत सू जो मिले, ताको मिलिये धाय,
अंतर राखे जो मिले.. ताको मिले बलाय "... कबीर

3 comments:

  1. अरे वा कमल भाई मजा आ गया ........

    एक कलम हमारे पास भी है , ओर एक कागज कोरा कोरा......

    उस पर लिख डालो हमारे लिए भी , कुछ थोडा थोडा........

    कुछ मीठा सा , कुछ खट्टा सा......

    कुछ पुरानी यादो का , गट्ट्ठा सा.....

    जिसे खोल मुशकाए हम , ओर उन यादो मे खो जाए हम......

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  2. कभी कभी लगता है कि हमारा क्या होगा ? सब जैसे एक ही मराहिल से गुज़र रहे हैं.. अभी ही पता चल गया जो देर से पता चलना था... असल जिंदगी बहुत उबाऊ है दोस्त. हम प्यार के बाद भी वही सब कुछ करते रहते हैं के जो नहीं करना था... कई बार बोरियत में... आप यकीन करो एक बार दिन काटने के लिए मैंने मचान पर पेट के बल लेट कर दिन भर गौरैया को देखा था.

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  3. आप किसी दिन दहाड़ मार मार कर खुद को रोते हुए कमरे में पाते हैं तो आप जान जाते हैं कि... वह जो आप खुद को समझते है..वह सब आप नहीं है...... true! very true!!!

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