Monday, October 15, 2012

उसकी आंखो में एक ही बूंद हुई तो?

नल ही सूखा है या टैंकी ही खाली है
बावजूद इसके के अब प्यास भी नहीं

 क्या अटक जाता है ?
सिर्फ़ बारिश ही हो..क्या क्या गिरता रहता है न जाने
कुछ नहीं |
एक बैठा रहता है

दूर समन्दर को देखता
गोल गोल लहरों में जलेबियां निकल आती है

नमक की चासनी में तार नहीं बनता ।
तब के आती है खेल खेल में वो एक घरोंदा बनाती है
उसका मन तो न था

कितनी जिद करती है वो!
प उसे रेत से कोइ इत्तेफ़ाक नहीं

पूरी थाह खारे
पानी के छोड़ उसे फिक्र हो जाती है एक बूंद खारे पानी कि
उसकी आंखो में एक ही बूंद हुई तो?
वो भी लग जाता है
दूने उत्साह से घर बनाने में
सब भूल जाता है
कि उसने कित्ते ही बनाए
समन्दर से सब तहस नहस कर दिये..
इस बार भी ये ही होगा
वो अपनी एक बचाई हुई बूंद भी समन्दर को दे देती है
काफ़ी देर तक वो टूटे हुए घर को देखेगा
फिर मुंह फ़िरा लेगा समन्दर की तरफ़
गोल गोल लहरों में जलेबियां निकल आती है
नमक की चासनी में तार नहीं बनता ।

क्यों खाना खाने के बाद भी भूख नहीं मिटती ??


P.S.
१५०० की एक सेकेन्ड हैन्ड साईकिल ली है... बर्बाद गए... कोई भी लड़की आगे बैठने को तैयार नहीं...
उन्होने ’बर्फ़ी’ बनाई...
मुझे लगा ..
क्या पता " सिंगौड़ी " ही बन जाए..।
देखिये कितने वसूल हो पाते है ।



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