Thursday, March 1, 2012

Anonymous's Thoughts

{जब मैने खुद इसे पढ़ा, समझ ही नहीं आया कि क्या कहना चाह रहा था। और विरोधाभास भी है बहुत जैसे पहले पहले स्नेह को व्यक्त करने से परहेज की जरूरत और फिर उसे व्यक्त करने की जरूरत ।

व्यक्त करने के तीन चरण है:

१)लिखा जाना/बोला जाना।गाया जाना।
२)किया जाना।
 और
३)होना   }



संगीत । पसन्द एक कारक हो सकता है जिसके आधार पे लोगो की गिनती की जा सकती है ।
खैर कुछ अस्पृश्य विचार आ रहे हैं और किसी के आग्रह पर इन्हे सेव कर लेता हूं। एक पन्ना लिखे जाने से पहले फाड़े जाने वाले उन सभी पन्नों का क्या जो लेखक के हिसाब से " मजा नहीं आ रहा" ।
जब भी कुछ सोचने की कोशिस करता हूं।  असली मुद्दे से भटक जाता हूं, दिमाग मेरे कन्ट्रोल मे नहीं है... । किस के है?
व्यक्ति की  हम पसन्द उसके बारे में बहुत कुछ बताती है । खैर बहुत क्या बताती है,जो भी हम पसन्द करते हैं.. वस्तुतः हम वही हैं ।

संगीत में क्यों किसी भी गीत के बोल उसे रुचिकर या अरुचिकर बनाने में बहुत महत्वपूर्ण  होते हैं ?

Anonymous : संगीत पसन्द करते हो ?
me: बहुत बहुत ज्यादा ।
( पास्ट टेन्स है । आज ४.५२ , १ मार्च २०१२ को ये कथन उतनी शिद्दत से सत्य नहीं है जितनी कि ये कहते वक्त था)
Anonymous: Instrumental music सुनते हो । बिना बोल के ।

Me
: नहीं ।

Anonymous: ये जरूर तुम्हें कुछ बताता है । हैं के नहीं । देखा तुमने। तुम संगीत पसन्द करते हो । इसमें कोई शक नहीं पर वह क्या है जो तुम्हे रुचिकर लगता है ।

Me
: पता नहीं । शायद उसके बोल । भाव..नाएं शायद । पता नहीं ।

Anonymous
:  बिल्कुल सही । तुम गीत पसन्द करते हो । किन्तु उससे जुड़ी भावनाओं के कारण। और ऐसा केवल संगीत के साथ ही नहीं है। इसीलिये शास्त्रीय संगीत आम रूप मे उतना प्रसिद्द नहीं है । क्योंकि  उसमें केवल गायन की सहूलियत के लिये चंद वाक्य होते है। जैसे की किसी भी गीत की चलचित्र मे स्थिति देखकर भी गाना अच्छा या बुरा लगने लगता है । गीत की भावनाएं जितना आप की वर्तमान भावना से मेल खाती है , आप को वह उतना ही रुचिकर लगता है। या फिर कहें की गीत की भावनाए उन भावनाओं से मेल खाती है जिनकी आप कामना करते है ।

( Obviously Sad songs are so much appreciated ... Ahhh... Each  hearts broken once or once ..)

Me:
तुम इस विषय में क्या सोचते हो । अवश्य ही तुम्हारे साथ ये हुआ होगा ।
( एक दम्भ की भावना के साथ ," मेरे साथ ये नहीं हुआ । कम से कम किसी को पता तो नहीं.. , हो सकता है , पता हो ! पर जब तक मैं इसे स्वीकार ना करूं , कोई इस विषय मे मुझे तर्क नहीं कर सकता ")

Anonymous: आह , तुम जानते हो । ये हम मे से हर किसी से साथ होता है । हर कोई छिपाता है और हर कोई यह जानता है कि तुम इसे छुपाओगे । और वे स्वयं भी छुपा रहें होते है ।
ये एक ऐसे शहर की कल्पना के समान जिसमें सब चोर है और सब जानते है कि हर दूसरा चोर है । मूक समझौता । हंसने की बात है  । है कि नहीं ?

Me: चलो मानता हूं कि हम छुपाते है ,तो इसमें गलत क्या है |

Anonymous : कुछ भी नहीं, पर कोई भी काम केवल इसीलिये किया जाए के वो गलत नहीं है ।
तुम छुपा क्या रहे हो "तुमसे ही, तुमसे ही मोहित चौहान "
और अगर मै तुमसे कहूं कि ठीक है अच्छा है पर असली संगीत सुनने के लिये चौरसिया जी की बांसुरी सुनो "
तो शायद तुम मेरा सर फोड़ने के लिये तक तैयार हो जाओ ,और चौरसिया जी का नाम सुनकर मेरी हंसी उड़ाओ । तो तुम इस गाने को सुन रहे हो, उससे गजब का इत्तेफ़ाक रखते हो ( "यार ये मेरी स्थिति से कितना मिलता है ").. ह अह अह ह अह अह अह आ.... तुम सोच सकते हो कि यह इत्तेफ़ाक है,
आह !,महान..अदभुत..पर तुम जानते हो इसे सुनने वाला हर ०.२ वां आदमी यही सोचता है ।

Me: नहीं नहीं ! बस ऐसे ही सुना,गाना अच्छा है|  जरूरी नहीं कि इसे पसन्द करने के लिये मुझमे ये  भावनाएं हो । है क्या?

Anonymous: ठीक है ,ठीक है | मुझसे ना कहो, पर खुद अपने आप से तो कहो । इसमें गलत कुछ भी नहीं पर ध्यान रहे कि इसमे महान  भी कुछ नहीं क्योंकि महानता  की जो कल्पना तुम करोगे वह सहीं नहीं है ।
यह इसलिये महान नहीं है कि केवल तुम इसे सही में समझ पाए हो या ये विशुद्ध है । नहीं। ये  जो है सो है।

Me: तो क्या ? भावनाएं। इसमें गलत क्या है । वही तो जाहिर किया जा रहा है जो है

 Anonymous
: नहीं  | देखो यह आग है जो खाना पकाती है पर दिखता क्या है? धुंआ। और जितना ज्यादा धुआं, उतना बेकार ईधन |आग बुझा दो , और जो बचेगा वो केवल धुंआ,  बहुत सारा, पर व्यर्थ |यह आग है जो आवश्यक है ।

भावना को जन्म तुम देते हो और फिर यह तुम्हे एक नया जीवन दे सकती है । पहले तुम इसे बनाते हो,फिर ये तुम्हे बनाती है । इसे सम्भाल के रखना आवश्यक है । जैसे भाप की शक्ति। बंद ,उच्च दाब पर यह अत्यधिक शक्तिशाली और उपयोगी है । पर यह दिखाई नहीं देती | देखने के लिये आप इसे खोलते है ,और बस,,फुस्स !!

Me: कुछ और स्पष्ट करो ।
Anonymous :
  भावना , समझो एक बीज की तरह है ।जिसे पोषित हो कर पेड़ बनना चाहिये । ताकि फल निकल सकें । और अचरज उस फल के अंदर फिर वही बीज होगा। और हम क्या करते हैं?  उत्सुकता में बीज को खोलकर उसमें जीवन को देखना चाहते है ।
और होता क्या है ?  पेड़ बनने की संभावना ही नष्ट हो जाती है ।स्नेह की यह भावना ,यह बीज गर सहेज कर रखा जाए जो इन भावनाओं मे जीवन बनाने की क्षमता है, वैसा ही जीवन जैसी की भावना है ।और एक दिन यह स्वयं को प्रकट करती  है । जिसका आनन्द आप भी उठाते है और दूसरे भी । इसी से एक नई भावना पैदा होती है । जैसे कि एक पेड़ से  एक फल निकलता है जिसका आनन्द पेड़ भी उठाता है और दूसरे भी । और इसी फल से एक नया बीज निकलता है । एक नयी संभावना ।

रूमी का एक कथन किसी ने अनुवाद किया था।
" महत्वपूर्ण क्या है?  एक दूसरे के लिये प्रेम?  नहीं । एक दूसरे के बीच का प्रेम ।"

हनी ! डार्लिंग ! वाह ! ,  उत्तम ! जैसे केवल यह ही प्रमाण है । आब्वियस है कि प्रेम के विषय में लिखने वाले प्रेम से अनभिज्ञ होते है । खैर जानने लायक है भी क्या । प्रेम क्या है?
वाहियात प्रश्न है  ।
टमाटर का सूप है, लो !
प्रेम प्रेम है। और क्या हो सकता है ।

खैर लिखना बोलना ,कुछ भी गलत नहीं । पर यू सी, डोन्ट जस्ट थ्रो ईट लाईक दैट.( इन एक्स्प्रेशन )

मानता हूं । बोला गया, लिखा गया , प्रश्न किया गया प्रेम सूपरहिट है ।पर आप सारी दुनिया को जीत सकते हैं पर क्या फ़ायदा जब खुद को खो दिया । बुल्लेशाह .. कबीर .. तुलसी ने अपने रचनाओं को बेचा नहीं..शायद लिखा भी नहीं ।

भावना का मोल वहां खत्म् होने लगता है(प्रतीत होता है ..हांलाकि होता नहीं) जहां प्रतिभावना नहीं दिखाई
देती । पर मेरी भावना ,मेरा स्नेह मेरे लिये है |ये मुझे बनाता है खुश रखता है| दूसरे को नहीं ।
पर कहां ?
मैनें क्या क्या किया। मुझे क्या मिला ?
( हांलाकि कुछ भी नहीं किया उसके अलावा जो आपको तथाकथित रूप से महान अच्छा बनाता है )
और तब यह उठाके सबके सामने पटक दिया जाता है ।सब उसे नोचते है। और फिर किसी दिन हम उसे वापस छुपा लेना चाहते हैं , क्योंकि हमें पता चलता है कि जो मैंने महसूस किया |वही भावना मेरा उपहार थी ।पर अब तक गाड़ी निकल चुकी होती है ।

भावना का असतित्व अकेला है । तो क्या यह व्यर्थ है ?
यही तो दिक्कत है | हम दूसरे के प्रति तो स्नेह रखते है किन्तु खुद के प्रति कभी नहीं ।
(अहम की चतुराई यही है कि यह हनेशा भ्रम् में रखता है .." मैं खुद से बहुत प्यार करता हूं ।" पर सोचने और महसूस करने मे उतना ही फ़र्क है जितना सोचने और महसूस करने में है । आप सोचते है । मह्सूस करते है? आप दोनो काम एक साथ नहीं कर सकते । )

तो होता ये है कि मानो एक व्यक्ति अपना सब कुछ किसी और को दे आए और घर आके रोये " मेरे पास कुछ नहीं .किसी ने मुझे कुछ नहीं दिया ।
अबे उल्लू ! जो दूसरों को दे सकता है खुद को नहीं दे सकता । स्नेह का भण्डार अनन्त है.. आप इसे देते भी है पर स्वयं को भी तो दें ।

क्या जरूरत है ? बहुत जरूरत है. |किसी चीज की कमी तो है । हम सब महसूस करते है । क्या है वो ?
इश्वर प्लीज दुबारा शुरू मत करना । एक महान प्रश्न फिर आएगा..इश्वर क्या है?
टमाटर का सूप है, लो ! 
अरे इश्वर इश्वर है। और क्या हो सकता है ।
सच बताउं उसे अपनी जगह रहने दें . ( दिस इस अनडीबेटेबल )

स्नेह के भूखे है? 
अपने को खिलाएं ।  भण्डार अनन्त है, दूसरो को दें। देते रह सकते हैं । और फिर दूसरे से क्या मिलना है। अपना पेट तो भरा है भई।  देना चाहतो हो तो शुक्रिया। सब खायें ,सबको खिलायें । जैसे सब जगह लबा लब भर गया हो ? हर कोई दे रहा है, हर कोई ले रहा है ।

अपनी भावनाओं को संजोये,, सम्भालें और  एक दिन बाग के फूलों का आनन्द ले जिन्हें आपने ही बोया है।
क्या  उस बाग का क्या करूं जो चीख चीख कर कहता है , "  हम तुमसे बहुत बहुत प्यार करते है ? "
अक्सर पूछता हूं .."फूल कहां हैं ?"
तो खामोशी से कांटे आगे कर दिये जाते हैं ।
मत कहो कुछ .. मुझे नहीं जानना के तुम  कितना प्यार करते हो । कम से कम एक फूल तो दिखाओ । बस एक फूल । कोई जवाब नहीं आता ।
"ये भरोसा नहीं करता कि हम उससे कितना प्यार करते हैं "।
और निराशा में मुस्कुराने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता हूं ।

खैर इतना ही समझना है। फिर आनन्द लें ।

तुमसे ही दिन होता है...अ आ अ आ ..अ आ अ आ । और दिन होते ही काश तेरे आंगन मे धूप का एक कोना हो, और हो इक गिरहा छन छन कर बरसात भी के अबके बारिश ने आना भी है । तुझको जी भर भिगाना भी है ।

2 comments:

  1. Padhne par aisa lga.. maano... pahle kahin sun chuki hun....
    Arey haan!!!!! Kal he to tumne mujhe sab kuch btaya tha..!

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