Thursday, May 31, 2012

इतना सा पानी




मेरी है . हमारी है, सारी दुनिया प्यारी है
खुद में खुद की पूरी की पूरी हिस्सेदारी है ।

छतरी के किनारे हैं, बारिशों के धारे हैं,
इतना सा पानी या फिर प्यासे हम तुम्हारे हैं ।

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ऊपर चादर नीली, नीचे खाली है गुफ़ा
दुनिया दो का पहाड़ा , भूलो तो जरा ।

देखी गालों पे दरारें , जो भी था बड़ा ,
जितना ऊंचा खड़ा, उतना नीचे गिर पड़ा ।

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आफ़त पड़ी गले तो सर से ये उतारी है
सिक्कों की उधारी हमने नोटों पे वारी है।

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खाली जब सब हो गया खालीपन भी खो गया
कुएं का किस्सा अब कहानी हो गया ।

2 comments:

  1. खाली जब सब हो गया खालीपन भी खो गया
    सच है...!
    बेहद सुन्दर प्रस्तुति!

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