हर रोज एक दराज़ खोलता हूं
और कुछ निकल आता है
एक पुरानी सभ्यता के
अवशेष मिल रहे हों जैसे
आवाज, इशारा, नज़रअंदाजी और चुप
अंदाजा लगाकार अंदाज़ा लगाता हूं
और कुछ समझ आता है
एक बहुत पुरानी लिपि को
डिकोड करना पड़ा हो जैसे
कांच, दवात, शब्द और हंसी
छोटे सा ब्रश पकड़कर बहुत
एहतियात से हटाता रहता हूं धूल
कुछ छूट गया है तो
कोई वापिस लेने आएगा जैसे
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