तुम्हारे गुजरने से जो खुशबू कमाल आई है
यूं के जैसे
पड़ोस की आमा के चूल्हे में ठठंवाणी उबाल आई है
मैं तिरे पींछे उस दिन भी खड़ा था
उसी दिन
जिस दिन तेरी झोली में जीरे का तड़का पड़ा था
तिरी जुल्फ़ों में आटे का जो गुबार उड़ के आया था
तुझे दिखाता
उस रात मेरी रो्टी मे पलथन सवा ग्राम जुड़ के आया था
ठेले पे तू जों सहेली को फ़ूंक फूंक के खिलाएगी समोसे
हार मरा कि
बिना पूरी के पानी आएगा मिरे लबों से
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