Saturday, October 28, 2017

अलमोड़ा की जलेबी’



१) यूं  गुड़गुड़ाए बैठे हो महल्ले की छत में, दूर तक कोहरा निकलता है। 
हुक्के के हिस्से की सुबहें अब सिगरेट की खाक छानती हैं ।

२) ‘बरेली की बर्फ़ी’ सा कोई सस्ता उपन्यास लिखा कभी तो 
तुम्हारी क़सम उसका नाम ‘अलमोड़ा की जलेबी’ रखूँगा !

३) O मेट्रो में सीट पाने वालों 
बैठे रहो के हक़ है तुम्हारा 
पर जो ऐसे मेट्रो लाइन पैनल की ओर को घड़ी घड़ी देखते हो 
किसी को उम्मीद हो उठती है 
के तुम भी उठने वाले हो 
इसलिए डाल लो कानो में हेड्फ़ोन
और डूब जाओ यूटूब में
या गाना या सावन के शोर में
धँसा लो आँख किंडल की बिना led वाली स्क्रीन पर
और करो इंतज़ार
महाभारत के समय के उद्घोष का
अगला स्टेशन .......... है
दरवाज़े बाँयी तरफ़ खुलेंगे

४) कुछ कमाल है न ,
वो ख्याल ,वो जो बिना पूछे कर दिया जाता है|
 सफर में हूँ तो कोइ पूछे नहीं खाने के लिए , बताए भी नही के बना के रखा है 
कह देने से ,पूछ लेने से पता नहीं क्या कम हो जाता है | जैसे प्लास्टिक के फूल हो गए हों |



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