Saturday, October 28, 2017

वव्हाट्सप्प की चैट हिस्टरी



तुमने भेजी हैं जो  
फैज़ की गजलें 
गुलजार की त्रिवेणियाँ 
और पॉश की कवितायेँ 
दब चुके हैं 
वव्हाट्सप्प की चैट हिस्टरी में |
उन्हें ढूढ़ना कुछ ऐसा है
जैसे तुम्हारी मुस्कराहट से छानना शिकायतें
सागर से निकाल लाना कागज़ की कश्तियाँ
माना के कुछ भी नामुमकिन तो नहीं
पर तुम्हारी कॉलर ट्यून पे जब भी सुनता हूँ
"मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग "
कर लेता हूँ स्टेटस अपडेट
"मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ"
कितना स्क्रॉल करूँ अतीत को
की सेव कहाँ होता है
किसी से रोकर गले मिलना |



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