Sunday, February 7, 2016

वो तुम कहती थी ना !



1) हर ठेस को और गहरा कर जाती है 
लकीर रिस के निकल जाती है बातें
कच्ची मिट्टी सा दिल सब कुछ नहीं संभाल पाता
ये भरम मत रख , इस खामोशी पे न जा
जिन्दगी ! किसी रोज उठ के तुझे जी भर के कोसना है 


2) मैं लंबी कविता लिखना चाहता था
तुम बस मेरे कान तक पहुँच पाती थी
उचक कर एड़ियो के बल 


3) महंगे बर्फ़ के फ़ायों को किश्तों में भी खरीदा न सका, बारिश मुफ़्त है हमें
वही बात है कि जैसे गिरवी ही सही पर हिफ़ाजत में हो जिन्दगी।


4) बाकि तो मैं प्रेम व्रेम कुछ नहीं जानता पर चाहता हूं
जो चाकलेट खाऊं
उसमें से एक टुकड़ा तुम्हें भी दूं, वो भी हमेशा नहीं !


5) मुरव्वत ना सही
इतना ही हो पाया
सुबह से शाम करना
अब जाड़ो का रोजगार है
दिन भर ठुर्ठुराहाट !


६)अभी एक ताजा ताजा सांस ली है
वो तुम कहती थी ना !
आओ कुछ नया करें

७)गुड नाएट !
नाएट मे गुड़ कहाँ है, सब फ़ीका फ़ीका है रे !
P.S
बंदगी रास आने लगी है मुझे
अब डर है कहीं कोई खुदा मिल ही ना जाए ।

No comments:

Post a Comment