Sunday, July 22, 2012

ये मुल्तानी मिट्टी से खयाल




१)ए जिन्दगी
तू यूं भी तो गुजर ही जाएगी.
चलो ! फ़कत ही सही ।
वो अरसा , वे लोग
कुछ काम की नहीं तू..
सो तेरा इस्तेमाल तो न हुआ
चलो ! खपत ही सही ..



२) ये मुल्तानी मिट्टी से खयाल ..सूख जाएं तो रगड़ रगड़ के निकलते हैं फिर..।
धो लो !
क्या अरसे अरसे लेप के ऊपर लेप लगाये फ़िरते हो .लगाए जाते हो
लेप तेरे मीर ने भी देखे हैं..ग़ालिब ने भी देखे है..
चेहरा देखते तो....

३) धुंध भरी सुबह ...
कुछ दिख नहीं रहा..
शाम तो नहीं ।

४) तू चला जा !
" मैं आया ही कहां ? के चला जाऊं रे "
ये सुना तो उसने फोन रख दिया ।
सोच रहा हूं ....
अधिक दूर तक तो नहीं गया होगा अभी
बेचारा ..काश खुद को भी अपने साथ ले जा सकता ।
..........


५)तुमने सीध में भी आना है तो भी नजरंदाज कर देना है... पता है तुम्हें ?
एक साल खर्च होता है एक बारिश जमा करने मे ।
चाय के कप कमरे में इधर उधर लुटे पड़े है ...उदास... गुमसुम..
खबर पक्की थी कि तुमने चाय में चुस्कियां लेना छोड़ दिया..
ये तो कहतें है कि तुमने कभी शुरु ही नहीं किया ।
अब शर्ट पर काफ़ी गिराने के ख्याल भी नहीं आता .(पता है .कपड़े धोने वाला १८० र० लेता है १० कपड़ों का )
रेस्टोरेंट का टेबल क...ईा सालों से बुक है
मुझे उम्मीद के तुम्हारे इरादे तुम्हारे जैसे ना हो
टूटने मे जाता क्या है..
तोड़ने का सूकून तो देखो..
देखो कि
तुम्हारी बारिशे एक सी नहीं होती और..
मेरी बरसातें बिल्कुल एक सी होती है ।

६) घर के सामने ही होगी कहीं..
कहीं दूर तो कभी वो जाती नहीं...
उसके नाजुक कदम .. हुए इक उम्र के जमीं पे पैर पड़ने ही ना दिये..
कहीं छुप के डराती होगी...मनमानी है इतराती होगी..
कहीं नई जमीन कुरेद के नीबूं के बचे दाने न डाल रही है..
खुद को बाटंक...र सारे बक्खल खा जाती है...
जिन्दगी तू हर सुबह आंख में संतरे का छिक्कल निचोड़ जाती है..


६)क्यों तेरी मजदूरी में भी अवसाद के उधार नहीं चुकते ?
गर्द चड़ी मोटी खाल से टपकते पसीनों में लथपथ आ गई है.. । मुहं भी उठा किस राह गई ? ..किसके पीछे ?
जहन के ख्यालों मे हीक आ गई है ?
अंगड़ाई भी चिपचिपाने लगी है..गले भी लगाता तो बाजुओं से सरक कर बेशर्म रह गई है ।
जिन्दगी तू भी खालिश प्रेम गीत है .... ।
चंद वाह वाह और कदरदानों कि मोहताज..कि कुछ भी होती..दो रोटी का जुगाड़ तो होती ।



बारिश के बाद भी होती है बारिश .. एक पेड़ के नीचे कई देर खड़ा रहा मैं..।

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